बच्चों को पढ़ाने के लिए अविवाहित रह गईं डॉ. नीलम

माताएं लिख रही संतानों के भविष्य की इबारत

 बच्चों को पढ़ाने के लिए अविवाहित रह गईं डॉ. नीलम

एमआरजेडी कॉलेज में छात्र-छात्राओं के साथ शिक्षिका डॉ.नीलम पांडेय।

बेगूसराय डा.नीलम पांडेय को छात्र-छात्राओं से इस कदर लगाव बढ़ा कि वो अपने कॉलेज के बच्चों की होकर ही रह गईं। एमआरजेडी कॉलेज की प्राध्यापिका डॉ. नीलम ने बताया कि अब कॉलेज के बच्चे ही उनके परिवार हैं। उन्होंने अविवाहित रहने का फैसला किया। यदि उन्हें किसी चीज की जरूरत होती है तो यही बच्चे उनके काम कर देते। डॉ. नीलम की पढ़ाई नेतरहाट से हुई। कॉलेज की पढ़ाई रांची विश्वविद्यालय से की। बाद में उन्होंने ललितनारायण मिथिला विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। डॉ. नीलम को प्यार से बच्चे दीदी व मां से संबोधित करते हैं।

बलिया यूपी पैतृक गांव है। जन्म स्थान बिहार है। डॉ. नीलम बताती हैं कि उनके पिताजी वासुदेव पांडेय पहले नेतरहाट में शिक्षक थे। बाद में बेगूसराय नवोदय विद्यलय के प्रिंसिपल हुए। उन्होंने बताया कि 1987 के बाद बेगूसराय उनकी कर्मभूमि बन गया। कॉलेज के प्राचार्य प्रो. अशोक कुमार सिंह कहते हैं कि यों तो शिक्षक व बच्चों के बीच खास संबंध होता है। 

लेकिन, डॉ. नीलम के साथ बच्चों का गहरा लगाव है। वह कोर्स के अलावा नैतिक शिक्षा व व्यावहारिक ज्ञान पर ज्यादा जोर देती हैं। बच्चों का उनसे इस कदर लगाव हो जाता है कि कॉलेज से निकलने के बाद भी वे डॉ. नीलम से संपर्क बनाये रखते हें। डॉ. नीलम ने परिवार के सदस्यों के बावत पूछने पर बताया कि कॉलेज के बच्चे ही उनके परिवार के सदस्य हैं। ऐसे में सदस्यों की गिनती संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि शहर के किसी कोने में चली जाएं, कोई न कोई शिष्य दीदी व मां संबोधित करते हुए पहुंच जाता है।

माताएं लिख रही संतानों के भविष्य की इबारत 

बछवाड़ा। माताएं अपने बच्चों को ना सिर्फ इस संसार का दीदार कराती अपितु उसके रोजी-रोटी तक के सफर में भी साथ निभा रही हैं।

ये माताएं अपनी संतानों के समुचित लालन-पालन के साथ-साथ उनके कॅरियर संवारने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। खुद को दीये की बाती की तरह जलाकर बच्चों के भविष्य को संवारने में लगी हैं। इन माताओं में बच्चों के प्रति प्यार, ममता, त्याग व समर्पण उनकी गरीबी पर भारी पड़ रहा है।

रानी- एक पंचायत की विभा देवी दिहाड़ी मजदूरी कर अपने बेटे को अच्छे कान्वेंट स्कूल में पढ़ा रही है। उसने कहा कि वह अपने बेटे को पढ़ा- लिखा कर अधिकारी बनाना चाहती है। कादराबाद की आशा बहू मुन्नी देवी ने अपने बेटे को सीआरपीएफ बनाने का सपना पूरा किया है। रसीदपुर की आशा बहू रेणु देवी ने अपने पुत्र को बैंक मैनेजर बनाने का सपना साकार कर लिया है। नारेपुर पश्चिम की प्रियंका देवी अपने घर पर ही लहठी बनाकर दो बच्चों के परवरिश करने के साथ उन्हें अच्छे स्कूलों में पढ़ा रही हैं। सिसवा गांव की गुलशन खातून सब्जी बेचकर अपने बेटे को उच्च शिक्षण संस्थान में दाखिला दिलाई है। रानी गांव की गुंजन देवी गांव में ही ब्यूटी पार्लर चलाकर अपने तीन बच्चों के भरण-पोषण के साथ-साथ उनकी समुचित शिक्षा- दीक्षा की व्यवस्था कर रही है।

इन माताओं ने बताया कि उनके बच्चों की खुशी में ही उनकी खुशियां बसती हैं। माताओं ने कहा कि जब बच्चे पढ़ाई में या फिर किसी प्रतियोगी परीक्षा में सफल होते हैं तो उन्हें काफी गर्व महसूस होता है। कहा कि बच्चों को आगे बढ़ाने का सपना ही उन्हें स्वरोजगार के लिए प्रेरित करता है। बहरहाल बच्चों को जन्म से लेकर उनके कॅरियर संवारने में जुटी माताओं को सलाम। वैसे तो माताएं का योगदान भुला नहीं जा सकता है

खुद को बाती की तरह जलाकर रोशन कर रही अपने बच्चों का भविष्य
कोई सब्जी बेचकर तो कोई स्वरोजगार कर संवार रही अपने बच्चों का कॅरियर

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